आध्यात्म का सर्वोच्च शिखर, कला और संस्कृति का अदभुत संगम, प्रकृति का अनमोल खजाना और मानवीन शक्ति में विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश जो विश्व का दीपक हो, जिसकी संस्कृति और सभ्यता की रोशनी पूरे विश्व पर पड़ती हो, वह देश मानव विकास सूचकांक में 169 देशों में 119 वें स्थान पर एवं विषमता आधारित मानव विकास सूचकांक में यह 32 प्रतिशत और नीचे गिर गया हो तथा दुनिया के उन 20 भूखे देशों में शुमार हो जिनमे गृह युद्ध की आशंका बनी हुई हो।
इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिर्पोट के अनुसार अपने बाल मृत्यु की 48 प्रतिशत की दर के साथ अभी भी धाना, बांग्लादेश, सलोमन, आइलैण्ड, गुएना जैसे देशों से खराब स्थिति में हो। वही 230 के मातृ मृत्युदर के साथ यह जमैका, श्रीलंका, त्रिनिनाद, टोबैको, युक्रेन, और सउदी अरब देशों से भी बदतर स्थिति में हो तथा विश्व के 40 प्रतिशत कुपोशित बच्चे जिस देश में निवास करते हो जिनकी संख्या पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश से भी ज्यादा हो।
यह प्रश्न महज कठोर टिप्पणी ही नहीं बल्कि देश के नीति निर्धारकों को कठघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है। जिस देश में करोडपतियों की संख्या में बढ़ोतरी 21 प्रतिशत की दर से हो रही है तथा विश्व के 100 पूंजीपतियों की सूची में 10 भारतीय एवं भारतीय मूल के हो उस देश में भूख से मौतें क्यों हो रही है? सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी से शायद ही कोई असहमत हो कि हमारे ही देश में दो तरह का भारत नहीं हो सकता, एक समृद्ध और दूसरा भुखमरी का शिकार।
सरकार चाहे जितना भी विकास का दावा करे किन्तु इस यथार्थ से मुंह नहीं मोड़ सकती कि दोनों तरह के भारत का निर्माण वर्षो से होता चला आ रहा है एवं इनके बीच का फासला लगातार बढता जा रहा है। जिसके फलस्वरूप देश में समृद्धि भी बढ़ रही है तो इसके विपरीत निर्धनता और कुपोशण की जड़ें भी गहरी होती जा रही है ।
अमर उजाला
यह मान्यता लम्बे अर्से से चली आ रही थी कि राष्ट्र निर्माण की परियोजनाओं के विकसित होने के साथ – साथ जनता को उनके संवैधानिक अधिकारों का अवदान भी मिलता रहेगा तथा देश के आर्थिक चक्र में समग्र समाज समाहित होगा। परिणामतः गरीबी, बेरोजगारी और मानवीय दुर्दशा के सभी कारणों का उन्मूलन हो जायेगा । विकास की भौतिक द्रंदातमक्ता जैसे – जैसे गति पकड़ेगी और उत्पादक शक्तियों का जैसे – जैसे विकास होगा वैसे -वैसे जाति, समुदाय, सम्प्रदाय, धार्मिक और विभिन्न सामन्ती अवशेषों की संकीर्ण संरचनायें ध्वस्त हो जायेगी तथा समाज में सौहार्द्रपूर्ण एवं समरसता का वातावरण पैदा होगा। किन्तु आज यह अनुमान गलत साबित हो चुका है क्योंकि किसी देश, राज्य या लोकतंत्र की प्रगति का पैमाना यही हो सकता है कि भौतिक विकास एवं आर्थिक समृद्धि का फल किस हद तक आम लोगों तक पहुंचा । यह ऊपर लिखित विवरणों से स्पष्ट हो जाता है ।
यह सही है कि समाज के वंचित और निर्धन तबकों तक समृद्धि का प्रवाह धीरे – धीरे होता है, लेकिन इसका भी एक पैमाना होना चाहिए किन्तु हमारे देश में यह पैमाना कहीं नजर नहीं आता। दूसरी तरफ व्यवस्था और उस पर हानि वर्ग के द्वारा भी मिले आश्वासनों पर कभी गरीब, शोषितों, उपेक्षितों और पीड़ित जनता ने यकीन किया था किन्तु आज उन वादों की तरफ मुड़ कर एक नजर डालने पर हम देखते हैं कि कुछ वर्ग विशेष के निहित स्वार्थी तत्वों ने पूरी विकास प्रणाली को अपने ही वर्ग विशेष को विकसित करने की दिशा में मोड़ कर विकास के दायरे को संकुचित कर दिया है।
जिस प्रणाली के समक्ष आज समूचा शोषित एवं उपेक्षित वर्ग हैरतअंगेज ढंग से बेबस पड़ा है। लम्बे अर्से तक धीरज एवं शहनशीलता दिखाने के बाद इन लोगों का यकीन डगमगाने लगा है और आज इस नतीजे पर पहुंचता जा रहा है कि अब शायद हमें अपना ख्याल खुद ही रखने के लिये तैयार हो जाना चाहिये, जिससे शोषण, दमन, भुखमरी और तिरस्कार विहीन समाज की तरह बढने वाले कार्यभार की पूर्ति की जा सकती है।
परिणामतः इनके संघर्षो को दिशा देने के लिये एवं समाज में नैतिक मूल्यों पर आधारित समता, स्वतऩ्त्रता और न्याय स्थापित करने के लिये जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट ) का गठन अनिवार्य था। बहरहाल हमारा देश ही नहीं पूरा विश्व राजनैतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। पूरे वैश्विक स्तर पर समाजवाद, साम्यवाद, लेनिनवाद, माओवाद, मनुवाद एवं धर्म निरपेक्षता तथा इन आदर्शों पर आधारित गठित राजनैतिक संगठनो एवं उनके संचालकों का संकीर्ण चिंतन, समाजिक असंतुलन को और वीभत्स रूप देता जा रहा है।
ऐसे दौर में एक ऐसी विचारधारा की जरूरत थी जो समाज को जाति, धर्म, पंथ या वर्ग से उपर उठाकर मानवीय मूल्यों पर केन्द्रित संघर्ष की कल्याणकारी व्यवस्था दे, जिससे सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व का मालिक तथा समाज में आर्थिक रूप से समरसता लायी जा सके। इस जरूरत को भी पूरा करने के लिये जनवादी विचारधारा एवं इस पर आधारित एक राजनैतिक संगठन (जन राजनैतिक पार्टी) की अनिवार्यता काफी दिनों से महसूस की जा रही थी। इस कार्यभार को पूरा करने के लिये भी एक जनवादी पार्टी ( सोशलिस्ट ) का गठन ही बेहतर औजार साबित हो सकती थी। परिणामतः आधुनिक राजनैतिक परिदृश्य में सर्व हितकारी राजनैतिक विकल्प के रूप में जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) का गठन 23 अप्रैल 2004 को किया गया।
जन राजनीति के संघर्ष वाहक आमतौर पर कम्युनिष्ट ही माने जाते थे, परन्तु दुर्भाग्य तो इस बात का है कि समाज में व्याप्त असीमित गैर बराबरी, राष्ट्रीय सम्पदा की महालूट, चौतरफा घोटाला और भष्टाचार, जातीय एवं सामन्ती शोषण के दौर में भी वामपंथी आन्दोलन अनवरत कमजोर होता जा रहा है एवं दक्षिण पंथ की दो पूंजीवादी ताकतों कांग्रेस और भाजपा के इर्दगिर्द ही राष्ट्रीय राजनीति घूम रही है। जिसका हल सभी वाम दलों का मोर्चा बनाने के बाद भी नही दिखाई पड़ता।
ऐसे में जनवाद को केन्द्र में रखते हुए एक जनराजनैतिक मंच जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) का निर्माण अवष्यमभावी हो गया था। खासतौर पर भारत जैसे विशाल जनसंख्या एवं सामाजिक तथा धार्मिक विशमता वाले देश में जहां अमीरी और गरीबी के बीच का फासला तो असीमित है, किन्तु स्पष्ट वर्गीय स्वरूप अभी तक नहीं उभर पाया है वहाॅ पीड़ित समुदाय की राजनैतिक आकांक्षा को भी पूरा करने हेतु जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) की जरूरत थी।
जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) का निर्माण कम्युनिश्ट सिद्वान्त का निषेध नहीं बल्कि उसका विकास है क्योंकि जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) का चिंतन भौतिक विज्ञान (बाह्य विज्ञान) एवं आध्यात्मिक दर्शन (अन्तः विज्ञान) के बीच सामंजस्य पर आधारित होगा। जिससे समाज में आर्थिक समानता के साथ- साथ सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व का भी निर्माण हो सके, क्योंकि यह जरूरी है कि वर्तमान समय में व्यक्ति, समाज और व्यवस्था का केन्द्रीय विषय बदला जाये एवं भौतिक विकास के साथ -साथ आवाम के नैतिक उत्थान की परिस्थितियां पैदा की जायें, क्योंकि गरीबी है और इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि गरीबी का बेहतर संस्कार नहीं है, जिससे वह खुद को तेजी के साथ उठा सके। दूसरी तरफ अमीरों के संस्कार का स्तर इतना ऊंचा नहीं है कि वह गरीबों के हित के लिये काम कर सके और स्वयं को अतिरिक्त धन के बोझ से मुक्त कर सुकून भरी जिन्दगी जी सके । इस तरह हम देखते हैं कि आर्थिक विषमता की जड में भी मनोविकृति ही है।
हमें पता है जीवन में आदर्श का क्या स्थान होता है। हम मानते हैं कि अव्यवस्था है। व्यवस्था के लिए बेहतर नेतृत्व चाहिए। बेहतर नेतृत्व के लिए बेहतर व्यक्तित्व चाहिए। बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण कैसे हो इसका उत्तर केवल उच्चतम संस्कार के नीतिगत बिन्दु पर निर्भर करता है और सिर्फ इस बिन्दु को व्यक्ति, समाज और व्यवस्था का केन्द्रीय विषय बनाकर ही हम सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धार्मिक व्यवस्था की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं । इसलिए यदि हमें व्यवस्था बदलनी है तो व्यक्ति के साथ संस्थाओं और संगठनों को भी इस विषय को प्राथमिकता देनी ही होगी और यह बात वैश्विक स्तर पर लागू होती है।
जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के इस दस्तावेज में पार्टी की विचारधारा, आदर्श , केन्द्रीय विषय, लक्ष्य एवं शाशन की नीति आदि के बारे में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। यह दस्तावेज सिर्फ जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) का दृष्टिपत्र ही नहीं, अपितु आने वाले समय की बाध्यता है और वैश्विक स्तर पर व्यक्ति समाज और व्यवस्था के मार्गदर्शन का शास्त्र भी होगा।
व्यक्ति के लक्ष्य के अनरूप उसकी मन स्थित रहती है। जो अपने बारे में भी नहीं सोच सकता वो पागल है। स्वयं के हित की प्रधानता रखने वाला स्वार्थी होता है व अपने परिवार के बारे में सोचने वाला स्वार्थी से बेहतर है। समाज के बारे में सोचने वाले की मानसिकता सामान्य सोच को व्यक्त करती है। राष्ट्र के बारे में सोचने वाले बड़ी सोच के वाहक है, दुनिया के बारे में सोचने वाला महान व्यक्ति होता है और वे लोग जो पूरी प्रकृति के हितैशी है, तत्ववेत्ता होते हैं। ऐसे लोग सर्वोच्च संस्कार के वाहक रहे हैं और रहेंगे।
ऐसे महान व्यक्तियों एवं योद्वाओं के अतीत में अनेकों सुन्दर मिलन के नतीजे देख चुके हैं । जब नया इतिहास बना है, चाहे वो गुरू विश्वामित्र और मर्यादा पुरोषत्तम राम का मिलन हो या जीवन के कुरूक्षेत्र में पान्च्चन्य का उद्घोष करने और गांडीवधारी अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाले श्रीकृष्ण का हो या महान विचारक चाणक्य और चन्द्रगुप्त का हो अथवा सम्राट अशोक का बुद्धम शरणम् गच्छामि के प्रति समपर्ण का हो अथवा महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू का रिश्ता हो सभी जगह केन्द्र में अभिलाशा एक थी नवनिर्माण के सुबह की, मानवता की स्थापना की।
आज तत्ववेता स्वामी कन्हैया दास महाराज का जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट के लिए सानिध्य मिलना, आने वाले समय में जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के द्वारा स्वर्णिम युग की स्थापना की मिसाल होगा। बदलाव की उस मुहिम में हमें धैर्य, संयम और अनुशासन तथा सनातन परम्परा के ग्रंथों को वैश्विक चिन्तन एवं स्वरूप का महत्व समझाकर बदलाव की शुरुआत खुद से ही करनी होगी का पाठ पढ़ाकर नई उर्जा हमारे जीवन को दी है। साथ ही मानवीय गुणों के विकास एवं मूल्यों की स्थापना में हमारी संस्कृति एवं सभ्यताओं (मिश्र, मेसोपोटामिया, सिन्धु, हडप्पा आदि) में समाहित सर्वश्रेठ व्यक्तित्व निर्माण की कला का बोध कराकर हमारे चिंतन और चरित्र को जो आयाम दिया है, निष्चित रूप से आज हम खुद को सौभाग्यशाली महसूस करते है एवं हमें पूर्ण विश्वास है कि आने वाले समय में पार्टी के नेतृत्व में सामाजिक ,आर्थिक क्रान्ति के साथ – साथ जो सांस्कृतिक क्रान्ति होगी उससे पूरा विश्व इनके दर्शन एव चिंतन से अवलोकित होगा।
जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के समस्त कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों से हम यह आशा करेंगे एवं हमें पूर्ण विश्वास भी है कि इस दस्तावेज के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कार्यक्रम एवं रणनीतियां निर्धारित कर एक निश्चित समय के अन्तर्गत पूरा कर लेगें। यही समाज, देश और विश्व की सम्पूर्ण मानव समाज के हित में है।
जय जनवाद
आपका शुभेच्छु
(डा0 संजय सिंह चैहान)
राष्ट्रीय अध्यक्ष
जनवादी पार्टी ( सोशलिस्ट )